पहाड़ी शैली में बादलों का भावनात्मक अध्ययन
- लेखक
-
-
किरण शर्मा
##default.groups.name.author##
-
- संकेत शब्द:
- पहाड़ी शैली, बदलों का अंकन, भावात्मक, सौन्दर्यात्मक
- सार
-
भारतीय चित्रकला में “ बादल " विषय की शुरूआत मोरकथा, मेद्यदूत काव्य और वात्सल्य अलंकारो से होती है। जहाँ कालिदास द्वारा रचित मेद्यदूत में बादलों को "दूत" या भाव संकेतक के रूप में चित्रित किया गया है। चित्रकला के इतिहास में बदलों का दृश्यमान चित्रण 5वीं-6वीं सदीई की गुप्तकालीन मूर्तिकारिता और ग्रंथकला से आरम्भ हुआ विष्णुधर्मोत्तरा पुराण के चित्रसूत्र अध्याय में भी विशेष रूप से वर्षा ऋतु की लक्षण के रूप में भारी काले बादल, बिजली की झलक, चमकदार आकाश, पक्षियों का उड़ना आदि को चित्र में अंकित करने का निर्देश मिलता है इसके साथ ही हमें अंजता गुफा, में भी बादलों का अंकन गुफा सं 1 व गुफा सं 17 में देखने को मिलता है। साथ ही एलोरा व बादामी गुफाओं में भी बादलों का अंकन किया गया है। जिसमें देवताओं व अप्सरओं की आकृतियों को बदलों में उड़ते हुए चित्रित किया गया हैं। मध्यकालीन लघुचित्रों में भी बदलों का चित्रण विशेष रूप से बारहमासा व रागमाला चित्रो में अधिक भावात्मक ढ़ग से हुआ है। 12वीं शताब्दीं मे जयदेव द्वारां रचित गीतगोविंद में वर्षा ऋतु और मेघों के माध्यम से कृष्ण और राधा के मिलन-विरह का वर्णन मिलता हैं। जिसमें काले, फेन-झरते बादलों का दृश्य बेहद लोकप्रिय हुआ है। 17वीं-18वीं सदी में हिमाचल और पंजाब के राजदरबारों में विकसित हुई पहाड़ी शैली ने न केवल राधा-कृष्ण काव्य दृश्यों व बारहमाहसा चित्र श्रृंखलाओं में बादलों को कथात्मक भाव- संकेतक के रूप में अपनाया, अपितु उन्हें प्रेम, विरह, मिलन के भावात्मक रूप में भी चित्रित किया विशेषतः गुलेर से विकसित कांगड़ा शैली में सफेद बिजली - रेखाएं, बारीक रेखा और रंगो की सूक्ष्मता के माध्यम से बादल रूप को दृश्य - निर्माण और भावपरक ढ़ग से उकेरा गया है। इस शोध पत्र का उद्देश्य बदलों को सिर्फ मौसम की पृष्ठभूमि न मानकर, बल्कि पहाड़ी चित्रशैली में भाव-प्रेरक भाषा के रूप में समझना है। जो बादलों को केवल प्राकृतिक दृश्यता से निकालकर, उन्हे भावनात्मक संवाद और कथा दृश्यता की महत्वपूर्ण साधना के रूप में पेश करना है।
- Author Biography
- प्रकाशित
- 2025-09-30
- खंड
- Articles
- License
-
Copyright (c) 2025 ART ORBIT

This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.
How to Cite
Similar Articles
- कविता यादव, शिक्षा में कला और साहित्य: एक व्यापक विश्लेषण , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- Prabhulal Gameti, समकालीन कला में अपर्णा कौर और अनुपम सूद का अवदान : एक तुलनात्मक दृष्टि , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- Raj Kumari Kumawat, Life Skills and Arts Integration in NEP 2020: Towards Holistic Education , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- राजेश कुमार शर्मा, राजस्थान के दृश्य चित्रण में अलंकारिकता एवं प्रतीकात्मकता , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- अरुण कुमार यादव, चरुलता: साहित्य और सिनेमा में नारी की तलाश , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- प्रीति कपारिया, समकालीन महिला कलाकारों का योगदानः कलाकारों की आवाज़ और कला-माध्यम : अनीता दूबे व नलनि मलानी के संदर्भ में , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- Sanchihar Manisha, The Communicative Nature of Art in Ancient and Contemporary Contexts , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- Reema Phulwari, Indian Diaspora: Expansion Of Indian Perspective , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- डॉ. वीना चौबे, कला, लोककला और समाज का अंतरसंबंध , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
- Somya Rawat, FROM MUKHOTA TO DIVINE: REGIONAL VARIATIONS IN RELIGIOUS MASK MAKING PROCESSES ACROSS UTTARAKHAND'S CULTURAL LANDSCAPE , ART ORBIT: खंड 1 No. 03 (2025): ART ORBIT ISSN 3107-670X
You may also start an advanced similarity search for this article.
