भारतीय कला के वैश्वीकरण में मृण्मूर्ति कला का योगदान

लेखक
  • पूनम देवी

    महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश
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संकेत शब्द:
भारतीय, कला, वैश्वीकरण, मृणमूर्ति, योगदान
सार

मृण्मूर्ति कला अनादिकाल से अपने अंदर सभी बीते कालक्रमों की कहानी को संजोकर के काल दर काल विकसित होती चली आ रही है, यह कला लोक संस्कृति एवं लोककला का अनोखा संगम है। कुछ स्थानों में यह मृण्मूर्ति कला उस स्थान की लोककला के रूप में पुष्पित-पल्लवित होती रही है, और अपनी विशेषता से उस क्षेत्र को संपूर्ण राष्ट्र ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व के सामने एक अलग ही पहचान दिलाती है। मृण्मूर्ति कला की बात करें तो यह कला सिर्फ लोक कला की ही पारंपरिक विषयों एवं शैलियों, धार्मिक अनुष्ठानों एवं रोजमर्रा में उपयोगी पत्रों एवं धार्मिक मूर्तियों तक ही सीमित नहीं है। आज के वर्तमान युग में मृण्मूर्ति कला ने एक नवीन आयाम प्राप्त किया है, वर्तमान युग की आवश्यकताओं के अनुरूप इस कला ने अपने आप को ढाल लिया है, एवं अनेक नवीन विषयों को भी अपना लिया है। यह कला अब क्षेत्रीय या किसी विशेष स्थान मात्र की सीमा रेखा में बंध कर नहीं अपितु इससे अलग पूरे विश्व में नवीन पहचान के साथ भारतीय कला के रूप में विकासशीलता को प्राप्त कर रही है। आज के समय में संपूर्ण विश्व भारत की विशाल संस्कृति एवं परंपराओं की ओर आकर्षित हो रहा है क्योंकि भारत ही एक ऐसा राष्ट्र है जो कदम-कदम में अपनी अलग-अलग सांस्कृतिक धरोहर को आज भी जीवंत करके चली आ रही है। भारत के प्रत्येक राज्य की एक अलग कला, परंपरा, वेशभूषा, भाषा इत्यादि है, भारत की इन कलाओं की अनेकता में भी एकता की भावना विश्व पटल में भारतीयता का परचम लहरा रही है। आज विदेशों में भी भारतीय संस्कृति को अपनाया जा रहा है, वह चाहे कला का रूप हो या धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्वरूप। सबसे अलग बात तो यह है कि भारतीय कला एवं संस्कृति प्रकृति पर आधारित एक विशुद्ध परंपरा है, जो प्रकृति संरक्षण के प्रति मानवीय भावनाओं को जागृत करने का काम करती है। हमारी मृण्मूर्ति काला प्रकृति संरक्षण के प्रति एक क्रांति है जो प्रकृति संरक्षण एवं संवर्धन की ओर कदम बढ़ाती है। भारतीय कला एवं संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाली मृण्मूर्ति कला भारत की कला विरासत एवं भारतीय सभ्यता को संपूर्ण विश्व के सामने प्रदर्शित करने का गौरव प्राप्त करती है अतः इस कला को एवं इस कला स्वरूप को सृजित करने वाले पारंपरिक कलाकारों को प्रोत्साहन एवं सरकारी लाभ प्रदान किया जाए, जिससे वह और अधिक उत्साह के साथ भारत की इस कला धरोहर को पुष्पित-पल्लवित कर सकें।

Author Biography
  1. पूनम देवी, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश

    रिसर्च स्कॉलर, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश

    डॉ. जयशंकर मिश्रा

    रिसर्च स्कॉलर, महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी चित्रकूट, सतना, मध्य प्रदेश

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प्रकाशित
2025-09-30
खंड
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How to Cite

भारतीय कला के वैश्वीकरण में मृण्मूर्ति कला का योगदान. (2025). ART ORBIT, 1(03), 23-28. https://artorbit.in/index.php/ao/article/view/8

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